बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा का सामाजिक गुलदस्ता बिखर गया था। इस चुनाव में वो कुर्मी वोटर काफी हद तक पार्टी से छिटक गए थे, जिन्होंने 2014 और 2019 में पार्टी का परचम लहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अब 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने कुर्मियों को फिर साथ लाने की मुहिम शुरू की है। यह अभियान सरदार पटेल की 150वीं जयंती को केंद्र में रखकर आरंभ किया गया है।
यूपी में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव किसी केस स्टडी से कम नहीं हैं। इस चुनाव में भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए का ओबीसी वोट बैंक में खासी सेंध लग गई थी। इनमें सबसे बड़ी सेंधमारी कुर्मी वोटों में हुई थी। इसके अलावा पासी, निषाद और कुशवाह वोट भी भाजपा से छिटका था। नतीजा यह हुआ कि 64 सीटों वाली भाजपा 33 सीट पर पहुंच गई थी, जबकि महज 62 सीटें लड़कर सपा ने 37 पर जीत दर्ज कर नई सियासी इबारत लिख दी थी। कांग्रेस भी छह सीटों पर पहुंची थी। जहां तक लोकसभा पहुंचने वाले कुर्मी चेहरों का सवाल है तो इनकी संख्या 11 रही। इनमें सात सपा, तीन भाजपा और एक अपना दल (एस) से हैं।
बांदा सीट पर सपा को वरीयता सबसे बड़ा उदाहरण बांदा लोकसभा सीट रही। यहां भाजपा और सपा दोनों ने ही कुर्मी प्रत्याशी उतारे थे। मगर कुर्मी मतदाताओं ने यहां सपा का साथ दिया। प्रदेश में गैर यादवों में कुर्मी ही ऐसी बिरादरी है, जो बड़ी संख्या में भगवा खेमे से अलग हुई। लोकसभा चुनाव में कुर्मी बाहुल्य भोगनीपुर विधानसभा सीट रही हो या घाटमपुर विधानसभा सीट। इटावा की सिकंदरा से लेकर बुंदेलखंड की कुर्मी बाहुल्य सीटों पर भी हार मिली।
सरदार पटेल जयंती के कार्यक्रमों की लंबी-चौड़ी रूपरेखा इसी को केंद्र में रखकर तय की गई है। हर विधानसभा क्षेत्र में आठ किलोमीटर लंबी पदयात्राओं के जरिए खासतौर से कुर्मियों तक पहुंचने की कोशिश करेगी। यही कारण है कि पदयात्रा के रूट में इसी बिरादरी के बाहुल्य वाले क्षेत्रों को शामिल करने के साथ ही उनकी भागीदारी की कवायद की जा रही है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी व महामंत्री संगठन लगातार समीक्षा कर रहे हैं। महामंत्री संगठन ने तो प्रदेश के सभी छह संगठनात्मक क्षेत्रों में इस पर बैठकें की हैं। दिल्ली भी अभियान पर नजरें गड़ाए है। राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल भी वर्चुअल माध्यम से तैयारियों को परख रहे हैं।

