बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और महागठबंधन का सूपड़ा साफ हो गया है। एनडीए जहां अब तक के सबसे बड़े बहुमत की ओर बढ़ चुका है तो महागठबंधन 30 से कम सीटों पर सिमटता दिख रहा है। आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है आरजेडी की ऐसी दुर्गति के पीछे एक वजह यह भी है कि अब ‘MY’ फैक्टर भी उसके साथ नहीं रहा। इसलिए कहा जा रहा है कि इस हार को आरजेडी कभी भुला नहीं पाएगी।
बिहार चुनाव में एक बार फिर आरजेडी ने सबसे अधिक ‘मुस्लिम-यादव’ समीकरण पर ही भरोसा जताया था। पार्टी ने 50 सीटों पर यादव तो 18 पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन 4 बजे तक आए नतीजों/रुझानों को देखकर पता चलता है कि ना तो मुस्लिम वोटर्स इस बार पार्टी के साथ एकजुट रहे और ना ही यादवों ने एकमुश्त वोट लालटेन के पक्ष में दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव एक चौंकाने वाली तस्वीर यह सामने आई है कि मुसलमानों ने राजद से अधिक असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पर भरोसा जताया है। चुनाव से पहले औवैसी को साथ लेने से इनकार करने वाली आरजेडी के महज तीन ही मुस्लिम उम्मीदवार जीतते दिख रहे हैं, जबकि एआईएमआईएम सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए ‘छक्का’ लगा दिया है। सीमांचल में ओवैसी के छह उम्मीदवार जीत हासिल करते दिख रहे हैं।
आरजेडी के लिए निराशाजनक बात यह भी है कि यादव बहुल सीटों पर भी पार्टी का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है। तेजस्वी यादव की अगुआई वाली पार्टी ने 50 सीटों पर यादव उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन महज तीन यादव उम्मीदवार ही जीत हासिल कर सकते हैं। माना जा रहा है कि मोदी और नीतीश के फैक्टर ने इस बार जाति बंधन को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से जो एक बड़ा लाभार्थी वर्ग तैयार हुआ उसमें यादव भी शामिल हैं और उन्होंने भी एनडीए का ही साथ दिया।

