छठ पूजा, सूर्यदेव और छठी मैया की भक्ति का अनुपम पर्व, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में विशेष उत्साह से मनाया जाता है। यह चार दिवसीय महापर्व नहाय-खाय से शुरू होकर उदय अर्घ्य तक चलता है। दूसरा दिन ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ का है, जहां व्रती गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाते हैं। लेकिन खास बात यह है कि प्रसाद मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर ही बनाया जाता है। खरना प्रसाद बनाने के लिए अन्य लकड़ी का उपयोग वर्जित है। आइए, इस परंपरा के पीछे छिपे महत्व और वैज्ञानिक कारण को समझें।
खरना पर व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को मिट्टी का नया चूल्हा तैयार किया जाता है, जिसमें पहले कभी कोई भोजन ना पकाया गया हो। चूल्हे को जलाने के लिए आम की सूखी लकड़ी का उपयोग होता है। गुड़, चावल, दूध और घी से बनी खीर पीतल या मिट्टी के बर्तन में पकाई जाती है। इसके साथ गेहूं की पूड़ी या रोटी भी बनाई जाती है। सूर्यदेव को अर्घ्य देकर व्रती प्रसाद को ग्रहण करते हैं।
मान्यताओं के अनुसार, आम की लकड़ी शुद्ध और सात्विक है। छठी मैया को आम का पेड़ प्रिय है, जो समृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है। आम की लकड़ी जलाने से प्रसाद में सकारात्मक ऊर्जा आती है, जो व्रत के पुण्य को बढ़ाती है। पुरानी परंपरा कहती है कि अन्य लकड़ी (जैसे पीपल या बरगद) का धुआं अशुद्ध होता है, जो मैया को अप्रसन्न कर सकता है। आम की लकड़ी से निकलने वाला धुआं वातावरण को शुद्ध करता है और घर में छठी मैया का आगमन सुनिश्चित करता है।
खरना छठ का दूसरा चरण है, जो 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत करता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रती अन्न-जल त्याग देते हैं। मान्यता है कि खरना पर बनी खीर मैया का आशीर्वाद है, जो संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि देती है। परिवार के सदस्यों को प्रसाद बांटने से घर में एकता और सुख आता है। 2025 में 25 अक्टूबर को नहाय-खाय, 26 अक्टूबर को खरना, 27 अक्टूबर का संध्या अर्घ्य और 28 अक्टूबर को उषा अर्घ्य है।
छठ पूजा में आम की लकड़ी से खरना प्रसाद बनाना शुद्धता, स्वास्थ्य और आस्था का प्रतीक है। यह परंपरा सदियों पुरानी है, जो प्रकृति संरक्षण को भी सिखाती है।

